vigyan ki uljhan

जग मे आए तीन कदरदान ,
इलेकट्रान् प्रोट्रान और न्युट्रान्
रब ने दिया इन्हे वरदान्,
दी इन्हे अपनी-अपनी पहचान्.
जोडा चक्र्व्यूह से तीनो को,
दिया इन्हे अलग- अलग स्थान ,
फिर भी हॅ न जाने क्यो ?
अपनी हालत पर हॅरान्.
करते हॅ शिकवा भगवान से.
होकर नाराज कहे इलेक्ट्रान्,
क्यो निकाला मुझे सेन्टर से,?
भ्रमण करने को चक्र्व्यूह मे,
रखा दोनो को न्यूकलियस के घर मे
डाला मुझे निगेटिव चार्ज मे,
रख दिया क्न्धे पर मेरे सारा काम,
एक पल भी न मिले आराम.
तभी बोला तपाक से न्युट्रान,
क्यो बनाया मुझे न्युट्र्ल ?
न कर सकु मॅ कोई हलचल,
दिया दोनो को एक सा नम्बर ,
कॅद कर रखा मुझे तो अन्दर्,
वही हूआ नाराज प्रोट्रान्,
कहने लगा होकर परेशान्,
चाहु मॅ तो आजादी,
लगा दी क्यो मुझपर पाबन्दी.
दिल कहे दुनिया देखना,
तुम कहो न्युक्लियस मे रहना.
पोसीटीव चार्ज न छोडकर जाना,
चाहु मॅ भी घुमना फिरना,
सुनकर बाते इनकी बोले भगवान,
होगा कॅसे पुरा मेरा प्लान्
सीखो खुश रहना हर हालात मे,
पहचानो अपने जीवन का वरदान्.

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